ठूँठ गन्ने से मिलती फ़सल की देखभाल

प्रा. डॉ. वि.सु. बावसकर (अनुवाद - डॉ. विद्युत लक्ष्मणराव कातगडे)


ठूँठ (Stump) गन्ने से फँसा (व्याप्त) खेत महाराष्ट्रमें प्राय : ४० - ४५% रहा है। किन्तु जबभी जल की पर्यात्प आपूर्ती नही होती, तब बोआईसे गन्नेकी खेतीका अनुपात घट जाता है, क्योंकि यही क्षेत्र ठूँठसे घिरा रहता है । ठूँठसे ली गन्नेकी खेतीमें जमीनकी (बोआई - पूर्व) तैयारी जरुरी नही, अत: श्रम, धन व् समय की बचत होती है। यदि करीनेसे देखभाल हो, तो बोआईसे गन्नेकी खेतीमें प्राप्त उपजसे अधिक ठूँठ खेतीका पैदावार हो सकती हैं। नयी पौध खरीद व् बेंडकी निगरानी प्रक्रियाके खर्चोंसे छुट्टी जो मिलती है, साथही ठूँठकी जड़ें अभी कारगर होनेसे गन्नेमें नये कल्लेभी जल्द निकलते हैं, तेज बढ़त और पक्वाताभी जल्द आती है। इन फायदोंसे खूष होनेके बजाय इस क्षेत्रसे परेशाँ आम कृषक अपनीही बड़ी भारी हानि करा लेते हैं। समयसे ठूँठ गन्नेकी आंतर - मरम्मत, सही खाद व् औषधियाँ, जल - देखभाल जैसे मुद्दोंपर जयादातर कृषक 'सौतेला नजरिया' रहते हैं, जिसके चलते ठूँठ गन्नेकी उपज कम होनेका भ्रम फैला है। ठूँठ गन्नेसे किफायती पैदावार लेनेहेतु सुनियोजन से इन्तेजाम बड़ी समझदारी हैं।

गन्नेके ठूँठ खेतमें बने रहने देनेके फायदे :

१) खेतीकी पुन: तैयारी गैरजरूरी होना, जिससे मशक्कत, समय और पैसों की बचत होना ।

२) नयी पौध खरीद व् बेंडकी निगरानी प्रक्रियाके खर्चोंमें बचत होना।

३) ठूँठकी जड़ें तैयार होनेसे गन्नेकी बढ़तमें अधिक तेजी और शीघ्र पक्वाताभी आना।

४) नयी कोपलें तेजीसे निकलना, समय की बचत होना।

५) नयी बोआईसे अधिक तेजीसे ठूँठ गन्नेकी पक्वता होना।

ठूँठ गंनेसे कम उपजकी कुछ वजहें:

गन्नेमें 'डंख' पडना, गन्नों का प्रति हेक्टेअर घनत्व (संख्या) कम होना, रोग व् कीटों से कुप्रभावित होना, आंतर - मरम्मतमें ढिलाई बरती जाना, सूक्ष्म अन्नद्रव्योंकी कमी होना, गन्ना तुड़ाई जमीनके बहुत निकट तक न होना - जिससे फर्वरिमें हुई तुड़ाईके तुरंत बाद, शेष ठूँठ प्रयोग में आएं, तो गन्नेकी उपज कम होती है। अत: अक्तूबर व् फर्वरीके बिच तोड़े गन्नेका ठूँठ बचाए रखें। देखा गया है कि रोग, किट व् तृणसे मुक्त खेतिके फलत: प्रति 'परसाली' (Altemate) मौसमी गन्नेमें न्यूनतम १५० मेट्रिक टन, 'मौसमपूर्व' गन्नेमें १२५ मेट्रिक टन और 'शुरूआती' मौसमके गन्नेमें १०० मेट्रिक टन प्रति हेक्टेअर गन्नेकी फ़सल होतीहै। मौसमपूर्व गन्नेके ठूँठ 'परसाली' व् 'शुरूआती' गन्नोंके ठूँठकी अपेक्षा ज्यादा उपजक्षम होते हैं।

ठूँठ गन्ने की खेतीसे अधिक उपज लेनेहेतु कुछ ध्यानाकर्षक खबरदारियाँ

१) जिस खेतिमें आरंभसेही बोआई, बढ़त तेज व् रोगमुक्त रही हो, तुड़ाई विलम्बतम फ़र्वरी अन्त तक हो चुकी हो, ऐसा गन्ना ठूँठ गन्नेकी खेतीहेतु उचित है।

२) गन्नेकी तुड़ाई होनेके पश्चात् यदि कहीं जमीनसे गन्ने तोडनेसे रह गए हों, उन्हें नीचेकी तरफसे जमीनसे यथासंभव नजदीक धारदार हसियासे काट लें, जिससे जमीनके निकट आँखें जानदार कल्ले बनने लग जाएं ।

३) गन्ने टूटनेपर, नीचेके भाग उचित ढंगसे छांट लेनेके बाद आसपासके सभी पत्ते उठाकर इनका कम्पोस्ट खाद बनानेकी प्रक्रियामें लाना सुनिश्चित कर लें।

४) गन्ना तुड़ाईके २ सप्ताहबाद ऊँचाईयोंकी दोनों बगलें हल की गहरी चालसे मिट्टी के ढेले तोड के जमीन को ढीली कर लें, जिससे मिट्टी भुरभुरी हो।

५) बगलोंकह मिट्टी भुरभुरी हो, ऐसी हालतमें खाद की पहली किश्त व् पानी दे दें।

६) ठूँठ गन्नेकी खेती १ से डेढ माहकी हो इसीबीच खुडपेसे तृण - बंदोबस्त कर लें।

७) ये ठूँठ गन्ना खेती डेढ से २ माहकी हो इसीबीच खादकी १ और किश्त देकर कल्लोंकी हल्की बंधाई कर लें।

८ ) साढेतीन से ४ माहके बीच खादकी अंतिम मात्रा दे दें और कल्लोंकी पक्की बंधाई कर लें।

९) ठूँठ गन्ना खेतीमें उपरोक्त ३) को अपनाकर पत्तोसे कम्पोस्ट खाद बना ली गयी है, तो मिट्ठी में चढानोंपर हटाने को खरपतवार होगाही नहीं, खुडपाईसे छुट्टी रहेगी। इस कार्यके खर्चे बचेंगे।

क्यों न रोगमुक्त व् बेहतर पैदावार हेतु बावासकर तकनीक निम्नवत प्रयोगमें लें :

१) प्रथम छिड़काव : (गन्नेकी तुड़ाई हो चुकनेपर २१ से ३० दिनोंमें) : स्वस्थ कल्ले निकल आने हेतु ५०० मिली जर्मिनेटर + ५०० मिली थ्राईवर + ५०० ग्रॅम प्रोटेक्टण्ट का घोल १०० लीटर पानीमें

२) द्वितीय छिडकाव : (३० ते ४५ दिनोंमें) : १ लिटर थ्राईवर + १ लिटर राईपनर + १ किलोग्रॅम प्रोटेक्टण्टका घोल १५० से २०० लीटर पानीमें

३) तृतीय छिडकाव :(२ से ढाई महीनोंमें) १ लिटर थ्राईवर + १ लिटर राईपनर + १ किलोग्रॅम प्रोटेक्टण्टका घोल १५० से २०० लिटर पानीमें

अधिक गर्म मौसम या बहुत ज्यादा बरसात होनेपर १ लिटर क्रॉपशाईनर भी उपरोक्त घोलमें मिलकर छिडकाव करें। यदि नये कल्ले देरीसे निकल रहे हों या टेढ़े व् बादके ठूँठ प्रयोग में लाते समय प्रिझम का प्रयोग अवश्य करें। मार्च से जूनके महिनोंमें तनेमें कीट और ऊपरी छोरके रेंगते कृमि शर्तिया नुकसान पहुँचाने आते रहते हैं। अत: प्रोटेक्टण्टका प्रयोग घोलमें शुरूसेही अनिवार्य हो जाता है।

गन्नेके कामकाज में अक्सर आती समस्याएं और उनपर प्रभावी उपाय :

जमीन सफेद रंगकी होंना और कल्ले पीले रंगके निकलना देखें, तो घोलमें ५०० मिली प्रिझम छिड़काव हेतु जोड़ दें।

२) अत्याधिक वर्षासेभी गन्नेके पत्ते पीले पड़ने, फ़टने और बाहरी ओरसे सड़ने लगते हैं। ऐसेमें या फिर पानीकी कमी के भारी संकटमें, पानी देनेका अनुपात प्रति माह से लम्बाही होगा। रायपर गौर करतेहुए क्रॉपशाईनर का छिड़काव लें, वरना नहीं। राईपनर से गन्नेमें लम्बाईके अनुपातमें अधिक 'बित्ते' बनेंगे, संख्याके अनुपातमें अधिक वजन होगा और मिठासकी मात्राभी ज्यादा रहेगी।

३) यदि फ़र्वरी मार्च माहके बोआई / कटाईहेतु फसल है, तो गर्मीके मध्य आते तुर्रोंपर रेंगते कीड़े और गन्नेपर तनाछेदक कीड़े होंगे अवश्य। गर्मिंयोंमें वैसेभी जीवित रहनेहेतु कोई भक्ष्य न मिलाने से ये परजीवी गन्नेकी और मुड़ते हैं एयर देखते पूरी फसल नष्ट करते हैं।

४) इनसे बचने हेतु शुरूआती २ छिड़कावों में प्रोटेक्टण्ट को अवश्य शामिल करना चाहिये। सावधानी दुर्घतानसे सदा भली होती हैं। डॉ.बावसकर टेक्नॉलॉजीके कृषि विज्ञान केन्द्रों से जुड़े विशेषज्ञों से मिलकर जैसीभी स्थिती हो, परिवर्तन किया जा सकता हैं।

५) वैसे तो गन्ना हट्टीकट्टी प्रकृतिकी फसल हैं। अत: क्रॉपशाईनर के प्रयोग हेतु अवसर कमही होंगे। लेकिन ठूँठ गन्नेमें नये कल्ले निकलते समय पानीकी मात्र इधरउधर हुई तो कल्ले पिला रंग लेते हैं, तब जर्मिनेटर, थाईवर व् प्रोटेक्टण्टके साथ जर्मिनेटर मिलाएं वरना नहीं ।

६) मौसम खराब (अक्तूबर/ मार्च में गर्मी) रहे, तो ९ ते १० माह उम्रकी फसल में शिखामें तुर्रे दिखाई देते हैं। विशेषत: गन्नेकी पुराणी प्रजातियों में। एसी दशामें राईपनर का प्रयोग टालना चाहिये। मात्र जब हवामें ठण्डक हो, तो गन्नेकी सभी प्रजातियों में राईपनर का प्रयोग उचित होगा। इससे गन्ने के बित्ते अधिक लम्बे, मोटापा (गोलाई), पक्वता अधिक और मिठासेमें वृद्धि होगी, फलत: अधिक मात्र व उच्चतर मिठासका रस, जो जयादा चीनी / गुढ़ प्राप्तीसे माल का स्तर ऊँचाही रखेगा ।

यदि रासायनिक खादें पाने में कमी / मुष्किलें आए, तब बढ़ते नन्हे गन्ने बाँधते हुए (दोनों छिड़काव होनेके बावजूद) १ लीटर थ्राईवर + ७५० मिली राईपनर + १ किलोग्रॅम प्रोटेक्टण्ट का २०० लीटर पानीमें घोल तत्काल व पुन : १५ से २० दिनोंबाद वैसाही अगला, यूँ कुल ४ छिड़काव करें।

७) बावसकर टेक्नॉलॉजीके प्रयोग से ३ माहका गन्ना ५ माहके गन्ने जैसी बढ़त, साढे ५ माह का गन्ना ७ माह जैसी, और १ सालभर का गन्ना १६ -१८ महके गन्ने जैस तैयार दिखता है । (संदर्भ: डॉ। पंकजराव दादासो शिंदे, बारामती, पुणे. दूरभाषा: ९८२२१९५१३५)

गन्नेकी पक्वता और तोड़ाई : ठूँठ से प्राप्त गन्ना १२ - १३ माहमें पक्वता प्राप्त कर लेता है। फसलकी तुड़ाई गन्ना - पकवता जाँच के बादही करें जिससे चीनी प्राप्तिमें बढ़ोत्तरी होती देखि जा सके। पक्वाताके कुछ लक्षण जान लें।

१) गन्नेपर मध्यमा उँगलीके नाखूनसे बजाकर सुनें तो धातुसी आवाज आएगी।

२) गन्नेके बित्ते जुड़ते स्थानोंपर आँखें काफी स्वस्थ व् उभरी होंगीं ।

३) गन्नेके पत्ते पीले पड़ना तेजीसे होता देखा जाएगा ।

निम्नांकित मुद्दोंपर गन्ना तोड़ाईके समय अवश्य ध्यान दें।

१) तोड़ाईकी तिथि तय होते समय ख्याल रहे कि १० -१५ दिन पूर्व खेतमें पानी देना रोकें। ऐसा करनेसे चीनीहेतु रसका घनत्त्व है, जिससे औसतन चीनीकी प्राप्ती बढती है।

२) गन्नेका हमेशा जमीनसे यथासंभव निकटही काटें।

३) गन्नेकी शिखाकी और रस और उसके मिठासकी मात्रा घटती जाती हैं। अत: उनसे रस लेनेको बने गठ्ठरोंमें २ - ३ निचलें, रसीले लठ्ठे अवश्य रहें।

४) अपने क्षेत्रका गन्ना सडकके अभावसे गंतव्यतक पहुँचनेमें विलम्ब न हो इसलिए रस्तेका इंतजामभी स्वयं कृषकको पूर्वमें बना लेना चाहिये।

५) गन्ना तोड़ लेनेपर खेतमेंसे कम्पोस्ट हेतु पत्ते हटाते समय कुछ प्रयोगलायक गन्ना खण्ड यदि मिलें, तो उन्हेंभी वाहनमें भर लें, किन्तु सूखे और रोगग्रस्त गन्नेका विपणन नही करना चाहिये ।

अधिक जानकारी हेतु ६ अन्य संदर्भभी नियतकालिक 'कृषि विज्ञान' के पुराने अंकोंसे प्राप्त होंगे, जैसे:

कृषि विज्ञान, मार्च २००१, पृष्ठ ५

कृषि विज्ञान, मार्च २००५ , पृष्ठ १०

कृषि विज्ञान, अगस्त २००६ , पृष्ठ ११

कृषि विज्ञान, मार्च २००६, पृष्ठ १२

कृषि विज्ञान, दिसम्बर २००९ , पृष्ठ १९

कृषि विज्ञान, दिसम्बर २०११, पृष्ठ १९